होली: एक पावन पर्व, नशे का उत्सव नहीं,

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होली नशेड़ियों,भंगेड़ीयों और शराबियों का पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति , कृषि , अध्यात्म और सामाजिक सौहार्द का प्रतीक है । यह ह त्योहार “नवान्न” (नई फसल) के उपभोग और ग्राम्य देवताओं को समर्पण करने की प्राचीन परंपरा से जुड़ा हुआ है।

दुर्भाग्यवश, आज बॉलीवुड में होली का चित्रण अक्सर नशे मद्यपान और उन्माद से भरे त्योहार के रूप में किया जाता है, जिससे इसकी पवित्रता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

बॉलीवुड में होली का गलत चित्रण

हिंदू संस्कृति में होली पवित्रता, प्रेम और आध्यात्मिक उल्लास का पर्व है, *लेकिन कई फिल्मों में इसे गांजा , भांग और शराब के नशे से जोड़कर दिखाया गया है। कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार हैं:*

 शोले (1975) – “होली के दिन दिल खिल जाते हैं

इस गाने में भांग पीने को मस्ती और मनोरंजन का हिस्सा बना दिया गया।

सिलसिला (1981) – रंग बरसे भीगे चुनर वाली

इस गाने में भी भांग के नशे को रोमांटिक और मज़ाकिया अंदाज में दिखाया गया।

*डर (1993) – “अंग से अंग लगाना”*

इसमें होली के दौरान जबरदस्ती, शराब और नशे की स्थिति को दिखाया गया, जो इसकी गरिमा को ठेस पहुंचाता है।

*ये जवानी है दीवानी (2013) – “बलम पिचकारी”*

युवाओं को होली के अवसर पर नशे में धुत्त होकर अनियंत्रित व्यवहार करते हुए दिखाया गया।

*बद्रीनाथ की दुल्हनिया (2017) – “बद्री की दुल्हनिया”*

इस गाने में होली को शराब और उन्माद के साथ प्रस्तुत किया गया।

 होली: कृषि प्रधान पर्व और नवान्न समर्पण की परंपरा

होली का मूल स्वरूप भारतीय कृषि संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह पर्व रबी फसल की कटाई और नई फसल के स्वागत का उत्सव है।

भारतीय किसान होलिका दहन के दिन अपने खेतों की पहली उपज (गेहूं , चना तिवड़ा आदि) को ग्राम्य देवताओं को समर्पित करते हैं और इसे पवित्र अग्नि में भूनते हैं, जिससे “होला” तैयार होता है।

गेहूं, चना, तिवड़ा आदि को होलिका की पवित्र अग्नि में भूनकर प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है।

*यह आधा-भुना हुआ अनाज (half roasted grain) “होला” कहलाता है, जिसे पूरे छत्तीसगढ़ में “होरा” के नाम से जाना जाता है* और इसे पूरे गांव में प्रेम और भाईचारे के प्रतीक के रूप में बांटा जाता है।

*अगले दिन “धुलेंडी” पर इसे प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है, जिससे लोग नई फसल का आनंद लेते हैं और ईश्वर का आभार प्रकट करते हैं।*

 ” *होला” से “होली” की उत्पत्ति* 

ऐसा माना जाता है कि ” *होली* ” शब्द की उत्पत्ति ” *होला* ” से हुई है।

जब लोग ” *होला है! होला है!* ” कहते हुए प्रसाद बांटते थे, तो यही परंपरा धीरे-धीरे ” *होली है! होली है!* ” के रूप में प्रसिद्ध हो गई।

इससे स्पष्ट होता है कि यह त्योहार सिर्फ रंगों का नहीं, बल्कि भारतीय कृषि, धार्मिक परंपराओं और सामाजिक सौहार्द का उत्सव है।

*होलिका दहन की राख का महत्व*

होलिका दहन के बाद बची हुई राख को शुभ और पवित्र माना जाता है।

इस राख को शरीर पर लगाने से रोगों से बचाव और सकारात्मक ऊर्जा का संचार माना जाता है।

कई स्थानों पर किसान इस राख को अपने खेतों में डालते हैं, जिससे भूमि की उर्वरता बनी रहती है और फसल की पैदावार में वृद्धि होती है।

 

  1.  *होली का सही स्वरूप: एक सुसंस्कृत और आध्यात्मिक पर्व*

होली का उद्देश्य केवल रंग खेलना नहीं, बल्कि प्रेम , सौहार्द , सद्भाव और *”नवान्न” के सम्मान का उत्सव मनाना है।*

फिल्मों में इसे सिर्फ नशे, उन्माद और अनुशासनहीनता से जोड़ना इस पर्व की पवित्रता और मूल भावना को नुकसान पहुंचाने जैसा है।

*हमें यह समझना होगा कि होली भारतीय संस्कृति का गौरवशाली त्योहार है, न कि गांजे और शराब का उत्सव* जैसा कि कई फिल्मों में दिखाया जाता है।

*निष्कर्ष*

*होली नशे और उन्माद का नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति , परंपरा और कृषि जीवन से जुड़े आनंद और अध्यात्म का पर्व है।*

 

*इसे केवल मौज-मस्ती और भांग-शराब के नशे से जोड़ना हमारी समृद्ध परंपरा को गलत तरीके से प्रस्तुत करना है।*

 

*हमें अपनी आधुनिक पीढ़ी को सही संदेश देना होगा और होली के मूल स्वरूप को बनाए रखना होगा, जिससे यह त्योहार प्रेम , भाईचारे और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने के लिए जाना जाए।*

अतः, हमें बॉलीवुड के *नकारात्मक चित्रण से प्रभावित हुए बिना होली को उसके वास्तविक स्वरूप को समझ कर हमें उसे उसके मूल रूप में मनाना चाहिए।

 

*आनंद स्वरूप मेश्राम, संबलपुर, धमतरी*

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